Monday, July 15, 2013

नेता नहीं, राशन आना चाहिए हेलिकाप्टरों से! ---आपदा पीड़ितों की गुहार------

नेता नहीं, राशन आना चाहिए हेलिकाप्टरों से!
---आपदा पीड़ितों की गुहार------ 


- विजेन्द्र रावत --
देहरादून, आपदाग्रस्त गंगोत्री में जब स्थानीय विधायक, अधिकारियों के साथ हेलीकाप्टर से उतरे तो उन्हें स्वागत के बजाये लोगों की खरी खोटी सुननी पड़ी। यहाँ रहे एक साधू ने कहा कि तुम्हारे बजाये अगर हेलिकाप्टर में दो कुंतल राशन व कैरोसिन आता तो यहाँ के लोगों का ज्यादा भला होता, जो दिन में भोजन व रात को उजाले के लिए तरस रहे हैं।
यह भीषण आपदा झेल रहे उत्तराखंड की एक कड़वी सच्चाई भी है जहां नेता उनके रिश्तेदार व चहेते पत्रकार हेलीकाप्टरों का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं और आपदा में फंसे लोगों तक आवश्यक सामग्री भी नहीं पहुँच पा रही है।
पिछले दिनों भागीरथी घाटी में प्रसव पीड़ा से तड़फती एक महिला को हेलिकाप्टर में इसलिए जगह नहीं मिल पाई क्योंकि उसमें एक मंत्री जी को देहरादून की उड़ान भरनी थी।उधर मंत्री जी ने उड़ान भरी और इधर प्रसव पीड़ा से तड़पती महिला ने दम तोड़ दिया। 
लेकिन अब नेताओं का उड़न खटोला प्रेम उनके लिए महँगा साबित होने जा रहा है क्योंकि उनके द्वारा की गई हवाई घोषणाएँ जमीन पर नहीं उतर पा रही हैं। जिसके कारण लोगों में आक्रोश भड़कता जा रहा है।
कई बार खुद मुख्यमंत्री विजय बहुगणा को भी जनता के विरोध का सामना करना पड़ा। 
सूत्रों की माने तो जनता के विरोध के डर से मुख्यमंत्री की आपदाग्रस्त क्षेत्रों की प्रस्तावित कई यात्राएं टल चुकी हैं।
रूद्रप्रयाग क्षेत्र में काम कर रहे समाजसेवी संस्था "क्लाइमेट हिमालय" के काशीनाथ वाजपेयी का कहना है कि यहाँ के आपदाग्रस्त गाँव में आपदा के महीने भर बाद नुकसान के आंकलन के लिए पटवारी पहुँच रहा है। सरकारी राहत सामग्री को पीड़ितों तक पहुंचाने की अब तक कोई नीति नहीं बन पाई है। अधिकारी आपदाग्रस्त इलाकों में सडकों से जाने के बजाये हेलीकाप्टर से जाने की फिराक में रहते हैं। जब नेता और अधिकारी हवा में सफ़र करेंगे तो सड़कें जल्दी कैसे खुलेंगी?
यही कारण है कि जगह-जगह पर सीमा सड़क संगठन और सार्वजनिक निर्माण विभाग के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूट रहा है।

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