दोहा सम्मेलन और उसके बाद : जलवायु परिवर्तनः चिंता किसे है
Author: समयांतर डैस्क Edition : March 2013
गोपाल कृष्ण
एदुआर्दो गालेआनो की किताब का पहला वाक्य है: "राष्ट्रों के बीच श्रम का बंटवारा यह है कि कुछ को जीतने में महारथ है और बाकी को हारने में"। यह 8 दिसंबर, 2012 को दोहा, कतर में संपन्न हुए जलवायु संबंधी समझौता वार्ता के परिणाम को उत्कृष्ट ढंग से व्यक्त करता है। सन 1971 में प्रकाशित ओपन वेन्स ऑफ लेटिन अमेरिका: फाइव सेंचुरीज आफ द पिलेज ऑफ एक कांटिनेंट (लातिन अमेरिका की खुली धमनियां: एक महाद्वीप की लूट की पांच सदियां) मात्र दक्षिण अमेरिका में कारपोरेट कंपनियों के हमले के बारे में ही नहीं है बल्कि भूमंडल के दक्षिण के विकसित देशों की धमनियों और शिराओं के बारे में भी है।
जब फिलीपींस के शिष्टमंडल के प्रमुख वार्ताकार नदेरेव सानो या जी 77 देशों के मुख्य वार्ताकार लुमुंबा दि-एपिंग जैसे सहृदय राजनयिक मानवता को साइक्लोन और तूफान जैसी मानव निर्मित प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए पुकार रहे थे उन के आंसू राष्ट्रों के बीच के श्रम विभाजन को रेखांकित कर रहे थे।
संयुक्त राज्य अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने गृहयुद्ध की समाप्ति के सिर्फ छह दिन बाद एक पत्र में लिखा था, "मुझे निकट भविष्य में ही ऐसा संकट आता नजर आ रहा है जो अपने देश की सुरक्षा की चिंता में मुझे कंपा देता है। युद्ध के कारण कारपोरेशनों का राज्याभिषेक हो गया है और उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार की शुरुआत होनेवाली है और देश की पैसे की ताकत जनता के हितों के ऊपर अपनी सत्ता को तब तक चलाए रखने की कोशिश करेगी जब तक कि सारी संपत्ति कुछ हाथों में सिमट न जाए और गणतंत्र खत्म न हो जाए। अपने देश की सुरक्षा को लेकर मैं इतना बेचैन पहले कभी नहीं था जितना इस समय हूं, यहां तक कि युद्ध के दौरान भी नहीं। " इस के ठीक छह माह बाद उनकी हत्या कर दी गई।
लिंकन का डर सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका तक सीमित था। दूसरे विश्व युद्ध और शीत युद्ध के दौर के बाद यह सामने आने लगा कि वे कारपोरेशन जो दुनिया की अर्थव्यवस्था पर शासन करते हैं वे गैर वित्तीय स्वाभाविक पूंजी के लिए ही खतरा नहीं हैं बल्कि इस पूरी पृथ्वी के लिए ही खतरा हैं।
26 नवंबर – 8 दिसंबर, 2012 के दौरान दोहा में हो रही यूनाईटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्रसंघ का रूपरेखा सम्मेलन यूएनएफसीसीसी) की कांफ्रेंस ऑफ द पार्टीज (सहभागियों की कोप 18) की 18वीं बैठक के बीच में ही टूट जाने की संभावनाओं के डर के बीच कई अपर्याप्त निर्णय लिए गए जिनमें क्योटो प्रोटोकॉल की दूसरी वचनबद्धता की समय सीमा में विकसित देश अपने प्रदूषण को कम करने के लिए वचनबद्ध थे। इस प्रोटोकॉल को ठीक 15 वर्ष पहले क्योटो, जापान में 11 दिसंबर को पारित किया गया था। यह 16 फरवरी, 2005 में लागू हुआ। अब तक 193 देशों द्वारा इसका अनुमोदन किया जा चुका है।
यद्यपि विकसित देशों द्वारा इसका अनुमोदन अपनी ऐतिहासिक गैरजिम्मेदारियों की मात्र औपचारिक स्वीकारोक्ति है, लेकिन उनके द्वारा अपनाये औद्योगिकीकरण के उस रास्ते से वह हिले नहीं हैं जिसने कि पूरी मानवता को कगार पर पहुंचा दिया है। यह यहां तक कि विकासमान देशों को भी उसी दृष्टिहीन और आत्मघाती औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, वित्तीयकरण और उपभोक्तावाद के योरोपीय और अमेरिकी रास्ते पर ले जा रहा है।
सन 2012 में 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल की पहली वचनबद्धता – जो कि 1992 के यूएनसीसीसी से जुड़ी थी- के अंत होते-होते नई अंतर्राष्ट्रीय रूपरेखा पर बात किए जाने और अनुमोदित किए जाने की सख्त जरूरत पैदा हो चुकी थी। अंतरसरकारी जलवायु परिवर्तन पैनल द्वारा संस्तुत प्रदूषण घटाने की सिफारिशों को लागू करने के लिए जरूरी थे। यूएनसीसीसी औद्योगीकृत देशों को प्रदूषण स्तर को स्थिर करने के लिए प्रेरित करता है, प्रोटोकॉल उन्हें यह करने के लिए वचनबद्ध करता है।
अपने पहले वचनबद्धता काल में प्रोटोकॉल 37 औद्योगीकृत देशों और योरोपीय संघ के लिए अपनी विगत 250 वर्षों की औद्योगिक गतिविधि के कारण वातावरण में ग्रीन हाउस गैस (जीएचजी) के निहसरण के वर्तमान स्तर के लिए मूलत: जिम्मेदारहोने के कारण जीएचजी को घटाने के लक्ष्य निर्धारित किए थे। यह सन 1990 के स्तर से 2008-2012 के पहले वचनबद्धता काल के दौरान औसत पांच प्रतिशत था।
दोहा से जो कार्यविधिकीय लाभ हुआ है वह यह है कि 31 दिसंबर, 2012 को समाप्त हुए पहले वचनबद्धता काल के समाप्त हो जाने के साथ ही 2013-2020 तक के दूसरे वचनबद्धता काल को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया। 25 से 40 प्रतिशत तक घटाने के लक्ष्य पर 2014 में पुन: विचार किए जाना तय हुआ है।
प्रोटोकॉल जिसके तहत विकसित देश ग्रीन हाउस गैसों को घटाने के लिए वचनबद्ध थे उसे संशोधित कर दिया गया है जिससे कि वह 1 जनवरी, 2013 के बाद भी जारी है। सरकारों ने निर्णय किया है कि दूसरा वचनबद्धता काल आठ वर्ष का होगा। प्रोटोकॉल की धारा 3, पैरा 9 के तहत इस संशोधन को प्रोटोकॉल के भागीदार 3/4 देशों को अनुमोदित करना जरूरी है।
सरकारों ने प्रोटोकॉल के तहत नए वचनबद्धता काल की शुरुआत कर दी है और वे 2015 तक एक विश्वव्यापी जलवायु संधि को अपनाने के लिए निश्चित समय सारिणी पर राजी हो गए हैं। वे विकसित देशों के लिए जलवायु वित्त और प्रौद्योगिकी बढ़ाने के लिए सहमत हो गए हैं। निश्चय ही विकसित देशों के पास पृथ्वी को दो डिग्री कम रखने के लिए पैसे और प्रौद्योगिकी है लेकिन उनमें राजनीतिक इच्छा शक्ति नहीं है। सन 2020 तक सभी देशों को शामिल करनेवाले एक वैश्विक जलवायु परिवर्तन संधि के लिए तेजी से काम करने पर सहमति हुई है। इसे 2015 तक स्वीकार कर लिया जाए जिससे कि विश्व, सहमत हुए अधिकतम दो डिग्री से कम के तापमान वृद्धि पर रुक सके। ऐसे पत्र की मुख्य बातें जिन पर बातचीत होगी हर हालत में 2014 के अंत तक उपलब्ध होगा जिससे कि वार्ता का परिपत्र मई, 2015 से पहले उपलब्ध हो जाए। संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की-मून 2014 में विश्व के नेताओं को राजनीतिक इच्छा शक्ति पैदा करने के लिए बुलाएंगे जिससे कि 2015 की सीमा रेखा को प्राप्त किया जा सके।
कोरिया गणतंत्र को ग्रीन क्लाइमेट फंड के स्थान के रूप में चुना गया है। इसकी शुरुआत 2014 में होने की संभावना है। विकसित देशों ने 2020 तक इसे अपनाने और तापमान को कम करने के लिए एक सौ अरब अमेरिकी डालर देने की अपनी वचनबद्धता को दोहराया है। जर्मनी, ब्रिटेन, फ्रांस, डेनमार्क, स्वीडन और योरोपीय संघ ने दोहा में 2015 तक छह अरबडालर देने का पक्का वायदा किया है।
यह दावा किया गया है कि संस्थागत व्यवस्था के लिए एक रास्ता तैयार किया गया है जिससे कि कमजोर लोगों को धीरे-धीरे बढऩेवाली घटनाओं जैसे कि समुद्र की सतह में बढ़ोत्तरी से होने वाले नुकसानों से बचने की व्यवस्था की जा सके।
कार्बन रेटिंग की असफलताओं से सीखने की जगह दुर्भाग्य से नया बाजार-तंत्र यूएनएफसीसी के अंतर्गत नए बाजार आधारित तंत्र का विस्तार करने पर राजी हो गया है। वह यूएनएफसीसी के बाहर स्थापित तंत्रों जैसे कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रशासित या आपसी कार्यक्रमों और विभिन्न देशों को उनके लक्ष्यों को कम करने में उनकी भूमिका को मान्यता देने पर राजी हो गया है। कार्बन कैप्चर और स्टोरेज की शंकास्पद प्रकृति के बावजूद इसका प्रोटोकॉल के क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म (सीडीएम) के तहत उल्लेख जारी है। प्रोटोकॉल का बाजार तंत्र – सीडीएम संयुक्त लागू करने और अंतर्राष्ट्रीय एमीशन ट्रेडिंग 2013 तक जारी रहेगी। विकासशील देशों को अपने एमीशनों को कम करने और उसे अपनाने में मदद करने वाली प्रौद्योगिकी के विकास और उसके हस्तांतरण के संदर्भ में कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है।
दोहा सम्मेलन से द दोहा क्लाइमेट गेटवे शीर्षक दस्तावेज जारी हुआ है जो कि प्रोटोकॉल को आठ वर्षों यानी 2020 तक के लिए बढ़ा देता है। लेकिन कनाडा, जापान, रूस, बेलारूस, यूक्रेन, न्यूजीलैंड, और संयुक्त राज्य अमेरिका के इस में शामिल न होने के कारण वैश्विक एमीशन 15 प्रतिशत तक ही सीमित रह गया है। विशेषकर यूएसए, कनाडा, अफगानिस्तान, एडोरा और दक्षिण सूडान ने प्रोटोकॉल को अभी तक अनुमोदित नहीं किया है।
दोहा सम्मेलन के लक्ष्यों को घटाने के लिए अमेरिका जैसे कईदेशों द्वारा जानबूझ कर की गई बेईमानी शुरू में ही सामने आ गई जब उन्होंने निर्धारित यूएनएफसीसी के प्रतिमानों को यथावत मानने की जगह अमेरिकी प्रतिनिधि ने तर्क किया कि अमेरिकी कांग्रेस द्वारा तय किए गए प्रक्रियात्मक मानदंडों को अपनाया जाए। उन्होंने राष्ट्रपति ओबामा द्वारा अपनी विजय पर 7 नवंबर, 2012 को दिए भाषण में आनेवाली पीढिय़ों को "गर्म होती पृथ्वी की विनाश की ताकत" से जो खतरा है उसको लेकर जो बातें कहीं, और अमेरिका द्वारा जलवायु परिवर्तन बातचीत में रुचि दिखलाने के बावजूद इसने अभी भी प्रोटोकॉल से दूरी बनाए हुए है। ध्यान देने योग्य है कि वेनेजुएला के राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज और ओबामा जब पहली बार मिले थे तो शावेज ने ओबामा को एदुआर्दो गालेआनो की किताब भेंट की थी।
असल में दोहा का नतीजा सिर्फ प्रक्रियात्मक है जो संकट ग्रस्त पृथ्वी के बारे में कोई वास्तविक उपचार प्रस्तुत नहीं करता। दोनों ही संधियों का चरम लक्ष्य ग्रीन हाउस गैसों के वातावरण में जमा हो जाने को ऐसे स्तर पर स्थिर करना है जो कि जलवायु व्यवस्था को खतरनाक मानवीय हस्तक्षेप से बचा सके। पर यह लक्ष्य अधूरा ही रह गया है।
लंबे समय से कहा जाता रहा है कि शहर विकास की मशीनें (ऐजिंन्स आफ ग्रोथ) हैं। अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि दुनिया के सौ महा नगर (मेगा सिटीज) पृथ्वी के 60 से 70 प्रतिशत एमीशन के लिए जिम्मेदार हैं। शहर मानव सभ्यता और पृथ्वी के लिए खतरा नजर आने लगे हैं। वे पानी और खाद्यान्न युद्ध को हवा दे रहे हैं।
बढ़ते हुए तापमान से पृथ्वी और इसके बाशिंदों को बचाने की ईमानदार पहलें करने की जगह विश्व बैंक के नए अध्यक्ष जिम योंग किम ने विश्व आर्थिक मंच (वल्र्ड इकोनॉमिक फोरम) की हाल की ही एक बैठक में कंपनियों से आग्रह किया कि "लाभ कमाने के अवसरों को हाथ से न जाने दें क्योंकि प्रौद्योगिकियों को बनाने और जलवायु परिवर्तन के चाप (आर्क) को मोडऩे में ढेरों पैसा है। "
कांफ्रेंस आफ द पार्टीज (सीओपी 19)का 19वां सत्र 2013 के अंत में विकसित देशों को अपने जलवायु ऋण को अदा करने और कानूनी उपचारों को सुनिश्चित करने के अधूरे काम को पूरा करने के लिए वारसा पोलैंड में होगा।
जहां दोहा असफल हुआ है वहां वारसा जलवायु न्याय के मार्ग में मात्र प्रक्रियात्मक रास्तों के कुछ ठोस हासिल करने में सफल नहीं हो सकता। क्योंकि संपदा बनानेवाली कारपोरेशन कहलानेवाली मशीनें सरकारों से बड़ी हो चुकी हैं और वित्तीयकरण करनेवाली बैंक नाम की मशीनेंअपनी संरचना में ही वित्तीय संपदा से आक्रांत हैं और प्राकृतिक संपदा की अपनी लूट और विध्वंस की स्वभक्षण की प्रवृत्ति से लापरवाह हैं।
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