Saturday, June 15, 2013

नवीन जिन्दल को खुला पत्र

नवीन जिन्दल को खुला पत्र

Photo: नवीन जिन्दल को खुला पत्र  प्रिय जिन्दल साहब, अभी उड़ीसा में ग्रामीणों पर आपके सुरक्षाकर्मियों द्वारा किये गये हमले के चित्र और वीडियो देख रहा था| चित्र में एक डेढ़ साल के बच्चे का टूटा हुआ पैर, एक सत्तर साल की बूढी का खून से लथपथ चेहरा| अस्सी साल के एक बूढ़े की डबडबाई आंखे और सिर से बहता खून| एक दूसरे वीडियो में अस्पताल के बिस्तर पर अपनी टूटी हुई टांग् के कारण तीन महीने तक काम पर न जा पाने की विवशता में सिसकता हुआ एक मजदूर दीख रहे हैं | ये सब देखते हुए मैं क्रोध और शर्म का अनुभव कर रहा था| इसमें शर्म मुझे खुद पर आ रही थी कि ये सब हमारे रहते हुए हो रहा है| और क्रोध किस-किस पर आ रहा था? वो इस पत्र में मैं लिखूंगा | जिन्दल साहब, एक सर्वे के मुताविक आप इस देश में सबसे ज्यादा तनख्वाह पाने वाले व्यक्ति हैं| आपकी तनख्वाह सढ़सठ करोड सालाना से ज्यादा है| यानि करीब पांच करोड़ महीना से ज्यादा | और सरकारी आंकड़ों के मुताविक इस देश में एक औसत ग्रामीण अगर अट्ठाईस रुपया रोज भी कमा ले तो सरकार उसे सम्पन्न मानने लगती है| यानि सरकारी हिसाब से इस देश के संपन्न व्यक्ति और आपकी आमदनी के बीच ढाई करोड़ गुना का अंतर है|  मैं ये बात कतई स्वीकार नहीं करूँगा कि आप इसलिए ज्यादा अमीर हैं क्योंकि आप उस अट्ठाईस रूपये कमाने वाले ग्रामीण व्यक्ति से ढाई करोड़ गुना ज्यादा मेहनत करते हैं| आपकी सारी अमीरी उन गरीबों की जमीनों के नीचे दबी हुई दौलत को बेचकर बनाई गई है, जिनको आपने मार-मार कर लहूलुहान कर दिया है| क्या किसी को छुरा मार कर उसका पैसा छीनने वाले गुन्डे और इन गरीबों का खून बहाकर पैसा कमाने की आपकी इन हरकतों के बीच आपको कोई अंतर दिखाई देता है ? माफ कीजियेगा आपको ऐसा न भी लगता हो पर जिन गरीबों की जमीन आपने गुंडों और पुलिस की मदद से छीन ली है वो आपको छुरा मार गुन्डे से कम नहीं समझते| आपको इस देश के सभ्य शहरी आपकी देशभक्ति के लिये पहचानते हैं| क्योंकि आपने सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा कर के ये फ़ैसला करवाया था कि देश का हर नागरिक अपने घर पर रोज तिरंगा झंडा फहरा सकता है| लेकिन क्या आपको लगता है कि आपके गुंडों की मार से लहूलुहान लोगों का अपने घर पर वो तिरंगा लहराने का मन करता होगा, जिसकी शपथ लेकर सरकार और पुलिस आपके लिये उन गरीबों की जमीन छीन चुकी है और आपने मुआवजे मांगने वाले गरीबों पर वहशी हमला कर दिया| और तिरंगे की शपथ लेने वाली पुलिस जनता पर होने वाले इस हमले के समय चुपचाप खड़ी देखती रही !  जिन्दल साहब ये तिरंगा झंडा खून से लथपथ ग्रामीणों और आपको एक बराबर नागरिक माने जाने का प्रतीक है| शुक्र मनाइये कि इन गरीबों को अभी इस तिरंगे द्वारा जनता को दी गई बराबरी की ताकत का पता नहीं चला है वर्ना ये गरीब आपका गिरेबान पकडकर आपको आपके महल से खींचकर बाहर निकाल लेते और आपको पास के थाने तक पीटते हुए ले जाते और उस तिरंगे की सच्ची शपथ लेने वाला थानेदार आपको एक साधारण गुन्डे की तरह हवालात में बंद कर देता| लेकिन जिन्दल साहब आप तो इस तिरंगे को खून में डुबोने पर तुले हैं| तिरंगे को लाल झंडा बनाने का काम मत कीजिये| वर्ना कहीं ऐसा न हो कि गरीब तिरंगे को अपने खून में डुबोकर फहरा दे और आपको भी मजदूरों की लाइन में खड़ा कर दिया जाये और आप भी दिन भर मजदूरी करने के बाद शाम को अट्ठाईस रूपये ही लेकर घर पहुंचें |  आप मैनेजमेन्ट कालेज चलाते हैं| क्या आपके यहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थियों को पता है कि आप पढ़ाते कुछ और हैं और वास्तव में मैनेजमेन्ट करते बर्बर तरीकों से हैं | क्या आपके द्वारा जो कानून पढाने का कालेज चलाया जाता है उसके विद्यार्थियों को पता है कि उनके कालेज का मालिक किस तरह कानून और संविधान को रौदता है? अपने लिये मुआवजे की मांग करने वाले गांव के लोगों को सताने के लिये आप उन पर दूर के प्रदेशों में फर्जी मुकदमे ठोक देते हैं जिससे आइन्दा कोई भी आपके खिलाफ कभी आवाज़ न उठा पाए ! आप जमीन लेने से पहले कानून में अनिवार्य सरकारी जन सुनवाई के नाम पर अपने गुंडों की मदद से जमीन छीनने के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले लोगों पर खूनी हमले करते हैं ! आवाज़ उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस को रिश्वत देकर आप जेलों में डलवा देते हैं ! अभी कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ में हाई कोर्ट ने आपके खिलाफ एक सम्मन जारी किया लेकिन आपकी कंम्पनी ने सारे क़ानूनों को ठेंगा दिखाते हाई कोर्ट का वो नोटिस लिया ही नही ! क्योंकि रायगढ़ जिले की सारी पुलिस की गाडियां आपकी पैसे से खरीदी गयी हैं और सारे पुलिस थाने आपके पैसे से बनाए गये हैं अब इस पुलिस की क्या मजाल जो आपको कोर्ट के आदेश की तामील करवा सके ? क्या अपने ला कालेज में कानून पढने वाले छात्रों को आप ये वाली गैर कानूनी हरकतों के बारे में भी बता सकते हैं ? आपके लिये जमीने छीनने के लिये बंगाल के जंगल महल का इलाका आज सरकारी फौजों से भर दिया गया है ! ये गरीब फ़ौजी उस इलाके में अपनी ज़मीन बचाने के लिये लड़ने वाले गरीबों से युद्ध कर रहे हैं ! गरीब एक दुसरे को मार रहे हैं ! और अन्त में गरीबों की लाशें बिछाकर जो जमीन छीनी जायेगी आप उस ज़मीन के नीचे की सार्वजनिक खनिजों की दौलत को विदेशियों को बेच कर अपने लिये और दौलत कमाएंगे ! इस भयंकर अनैतिक लूटपाट को आप शायद व्यवसाय कहते होंगे ? लेकिन आपकी ये हिंसक बेशर्म हरकतें इस देश के करोड़ों ग्रामीणों में लगातार गुस्सा भडका रही हैं ! हम कोशिश करेंगे कि गरीब का गुस्सा ज्यादा और जल्दी भडके ताकि वो भारत के संविधान में वर्णित समता और आर्थिक, सामजिक न्याय की गारंटी को जमीन पर उतार सके ! और उस लोकतंत्र को वास्तविक बना दे जिसका आप तिरंगे की ओट में रोज गला घोंट रहे हैं !  अगर आप इस पत्र को पढ़ने के बाद महसूस करें कि मैंने कोई भी बात् असत्य लिखी है तो मैं आपसे इन मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चा करने के लिये तैयार हूं !
प्रिय जिन्दल साहब,
अभी उड़ीसा में ग्रामीणों पर आपके सुरक्षाकर्मियों द्वारा किये गये हमले के चित्र और वीडियो देख रहा था| चित्र में एक डेढ़ साल के बच्चे का टूटा हुआ पैर, एक सत्तर साल की बूढी का खून से लथपथ चेहरा| अस्सी साल के एक बूढ़े की डबडबाई आंखे और सिर से बहता खून| एक दूसरे वीडियो में अस्पताल के बिस्तर पर अपनी टूटी हुई टांग् के कारण तीन महीने तक काम पर न जा पाने की विवशता में सिसकता हुआ एक मजदूर दीख रहे हैं |
ये सब देखते हुए मैं क्रोध और शर्म का अनुभव कर रहा था| इसमें शर्म मुझे खुद पर आ रही थी कि ये सब हमारे रहते हुए हो रहा है| और क्रोध किस-किस पर आ रहा था? वो इस पत्र में मैं लिखूंगा |
जिन्दल साहब, एक सर्वे के मुताविक आप इस देश में सबसे ज्यादा तनख्वाह पाने वाले व्यक्ति हैं| आपकी तनख्वाह सढ़सठ करोड सालाना से ज्यादा है| यानि करीब पांच करोड़ महीना से ज्यादा | और सरकारी आंकड़ों के मुताविक इस देश में एक औसत ग्रामीण अगर अट्ठाईस रुपया रोज भी कमा ले तो सरकार उसे सम्पन्न मानने लगती है| यानि सरकारी हिसाब से इस देश के संपन्न व्यक्ति और आपकी आमदनी के बीच ढाई करोड़ गुना का अंतर है| 
मैं ये बात कतई स्वीकार नहीं करूँगा कि आप इसलिए ज्यादा अमीर हैं क्योंकि आप उस अट्ठाईस रूपये कमाने वाले ग्रामीण व्यक्ति से ढाई करोड़ गुना ज्यादा मेहनत करते हैं| आपकी सारी अमीरी उन गरीबों की जमीनों के नीचे दबी हुई दौलत को बेचकर बनाई गई है, जिनको आपने मार-मार कर लहूलुहान कर दिया है| क्या किसी को छुरा मार कर उसका पैसा छीनने वाले गुन्डे और इन गरीबों का खून बहाकर पैसा कमाने की आपकी इन हरकतों के बीच आपको कोई अंतर दिखाई देता है ? माफ कीजियेगा आपको ऐसा न भी लगता हो पर जिन गरीबों की जमीन आपने गुंडों और पुलिस की मदद से छीन ली है वो आपको छुरा मार गुन्डे से कम नहीं समझते|
आपको इस देश के सभ्य शहरी आपकी देशभक्ति के लिये पहचानते हैं| क्योंकि आपने सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा कर के ये फ़ैसला करवाया था कि देश का हर नागरिक अपने घर पर रोज तिरंगा झंडा फहरा सकता है| लेकिन क्या आपको लगता है कि आपके गुंडों की मार से लहूलुहान लोगों का अपने घर पर वो तिरंगा लहराने का मन करता होगा, जिसकी शपथ लेकर सरकार और पुलिस आपके लिये उन गरीबों की जमीन छीन चुकी है और आपने मुआवजे मांगने वाले गरीबों पर वहशी हमला कर दिया| और तिरंगे की शपथ लेने वाली पुलिस जनता पर होने वाले इस हमले के समय चुपचाप खड़ी देखती रही ! 
जिन्दल साहब ये तिरंगा झंडा खून से लथपथ ग्रामीणों और आपको एक बराबर नागरिक माने जाने का प्रतीक है| शुक्र मनाइये कि इन गरीबों को अभी इस तिरंगे द्वारा जनता को दी गई बराबरी की ताकत का पता नहीं चला है वर्ना ये गरीब आपका गिरेबान पकडकर आपको आपके महल से खींचकर बाहर निकाल लेते और आपको पास के थाने तक पीटते हुए ले जाते और उस तिरंगे की सच्ची शपथ लेने वाला थानेदार आपको एक साधारण गुन्डे की तरह हवालात में बंद कर देता| लेकिन जिन्दल साहब आप तो इस तिरंगे को खून में डुबोने पर तुले हैं| तिरंगे को लाल झंडा बनाने का काम मत कीजिये| वर्ना कहीं ऐसा न हो कि गरीब तिरंगे को अपने खून में डुबोकर फहरा दे और आपको भी मजदूरों की लाइन में खड़ा कर दिया जाये और आप भी दिन भर मजदूरी करने के बाद शाम को अट्ठाईस रूपये ही लेकर घर पहुंचें | 
आप मैनेजमेन्ट कालेज चलाते हैं| क्या आपके यहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थियों को पता है कि आप पढ़ाते कुछ और हैं और वास्तव में मैनेजमेन्ट करते बर्बर तरीकों से हैं | क्या आपके द्वारा जो कानून पढाने का कालेज चलाया जाता है उसके विद्यार्थियों को पता है कि उनके कालेज का मालिक किस तरह कानून और संविधान को रौदता है?
अपने लिये मुआवजे की मांग करने वाले गांव के लोगों को सताने के लिये आप उन पर दूर के प्रदेशों में फर्जी मुकदमे ठोक देते हैं जिससे आइन्दा कोई भी आपके खिलाफ कभी आवाज़ न उठा पाए ! आप जमीन लेने से पहले कानून में अनिवार्य सरकारी जन सुनवाई के नाम पर अपने गुंडों की मदद से जमीन छीनने के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले लोगों पर खूनी हमले करते हैं ! आवाज़ उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं को पुलिस को रिश्वत देकर आप जेलों में डलवा देते हैं ! अभी कुछ दिनों पहले छत्तीसगढ़ में हाई कोर्ट ने आपके खिलाफ एक सम्मन जारी किया लेकिन आपकी कंम्पनी ने सारे क़ानूनों को ठेंगा दिखाते हाई कोर्ट का वो नोटिस लिया ही नही ! क्योंकि रायगढ़ जिले की सारी पुलिस की गाडियां आपकी पैसे से खरीदी गयी हैं और सारे पुलिस थाने आपके पैसे से बनाए गये हैं अब इस पुलिस की क्या मजाल जो आपको कोर्ट के आदेश की तामील करवा सके ? क्या अपने ला कालेज में कानून पढने वाले छात्रों को आप ये वाली गैर कानूनी हरकतों के बारे में भी बता सकते हैं ?
आपके लिये जमीने छीनने के लिये बंगाल के जंगल महल का इलाका आज सरकारी फौजों से भर दिया गया है ! ये गरीब फ़ौजी उस इलाके में अपनी ज़मीन बचाने के लिये लड़ने वाले गरीबों से युद्ध कर रहे हैं ! गरीब एक दुसरे को मार रहे हैं ! और अन्त में गरीबों की लाशें बिछाकर जो जमीन छीनी जायेगी आप उस ज़मीन के नीचे की सार्वजनिक खनिजों की दौलत को विदेशियों को बेच कर अपने लिये और दौलत कमाएंगे !
इस भयंकर अनैतिक लूटपाट को आप शायद व्यवसाय कहते होंगे ? लेकिन आपकी ये हिंसक बेशर्म हरकतें इस देश के करोड़ों ग्रामीणों में लगातार गुस्सा भडका रही हैं ! हम कोशिश करेंगे कि गरीब का गुस्सा ज्यादा और जल्दी भडके ताकि वो भारत के संविधान में वर्णित समता और आर्थिक, सामजिक न्याय की गारंटी को जमीन पर उतार सके ! और उस लोकतंत्र को वास्तविक बना दे जिसका आप तिरंगे की ओट में रोज गला घोंट रहे हैं ! 
अगर आप इस पत्र को पढ़ने के बाद महसूस करें कि मैंने कोई भी बात् असत्य लिखी है तो मैं आपसे इन मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चा करने के लिये तैयार हूं !

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