Sunday, 16 June 2013 10:37 |
विवेक सक्सेना यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि पश्चिम बंगाल में ममता साथ आती हैं तो उनके धुर विरोधी वाम मोर्चे का क्या होगा? उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा कैसे साथ आएंगी? बिहार में अगर नीतीश साथ आते हैं तो लालू यादव व पासवान का क्या होगा ? वे भी सेक्युलर वोटों के आढ़ती माने जाते हैं। तमिलनाडु में द्रमुक व अन्ना द्रमुक में से तीसरे मोर्चे में कौन शामिल होगा? आंध्र प्रदेश में यह मोर्चा तेदेपा व वाइएसआर कांग्रेस में से किसे अपना साथी चुनेगा? यहां यह भी याद दिलाना जरूरी हो जाता है कि जब कांग्रेस राहुल गांधी व मनमोहन सिंह को आगे कर, भाजपा नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का अपना उम्मीदवार बता कर चुनाव लड़ रही होंगी तो तीसरे मोर्चे का उम्मीदवार कौन होगा। कहीं इस सवाल पर ही मोर्चा बनने के पहले ही न बिखर जाए, क्योंकि उसके जितने भी नेता हैं वे बेहद महत्त्वाकांक्षी हैं। सभी प्रधानमंत्री पद के सपने देख रहे हैं। जबकि उनकी अपील उनके अपने राज्यों तक ही सीमित है। वे एक-दूसरे पर कितना भरोसा करते हैं यह उनका रिकार्ड ही बता देता है। सपा नेता मुलायम सिंह ने अमेरिका के साथ परमाणु करार के मुद्दे पर वाम दलों को व ममता को राष्ट्रपति पद के चुनाव में व एफडीआइ के मुद्दे पर कैसा गच्चा दिया था सब उससे परिचित हैं। अगर यह मोर्चा बनता है तो उसकी नींव आपसी अविश्वास पर रखी जाएगी जिसे हिलाते रहने के लिए नेताओं की निजी महत्त्वाकांक्षाएं और कुंठाएं काम करती रहेंगी। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/1-2009-08-27-03-35-27/47038-2013-06-16-05-08-25 |
Sunday, June 16, 2013
क्या जमीन पर उतर पाएगा तीसरे मोर्चे का ख्वाब
क्या जमीन पर उतर पाएगा तीसरे मोर्चे का ख्वाब
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