इसी सप्ताह छत्तीसगढ़ शासन ने अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रास संस्था को छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का इलाज बंद करने का आदेश दे दिया है . पिछले साल स्वास्थ्य सेवा करने वाली डाक्टर विदाउट बार्डर नामक संस्था को भी सरकार ने आदिवासियों को दवाइयां देने से मना कर दिया था .
इसी सप्ताह छत्तीसगढ़ शासन ने अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रास संस्था को छत्तीसगढ़ में आदिवासियों का इलाज बंद करने का आदेश दे दिया है . पिछले साल स्वास्थ्य सेवा करने वाली डाक्टर विदाउट बार्डर नामक संस्था को भी सरकार ने आदिवासियों को दवाइयां देने से मना कर दिया था .
सरकार सारी दुनिया को बेवकूफ बनाती फिरती है कि जी बस्तर में तो नक्सली हमें काम ही नी करने देते . अजी देखो हम तो विकास करना चाहते हैं पर ये नक्सली हमें विकास ही नी करने देते .लेकिन अब सरकार की सारी नाटकबाजी का खुलासा सरकार के इस कदम से हो गया है .
अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रास दुनिया में संघर्ष पीड़ित इलाकों में बीमारों, घायलों, कैदियों की सेवा का काम दशकों से करती आ रही है . अफगानिस्तान , सूडान , और कोरिया जैसे देशों तक में इस संस्था को काम करने दिया जाता है . लेकिन भारत के छत्तीसगढ़ में इस संस्था को काम करने से मना कर दिया गया है .
असल में सरकार का इरादा आदिवासियों को जिंदा रखने का है ही नहीं . सरकार को तो आदिवासियों की ज़मीन चाहिये . इस लिये सरकार आदिवासियों को जंगलों से भगाना चाहती है . लेकिन अगर आदिवासी को जंगल में स्कूल दवाई और खाना मिल जाएगा तो आदिवासी जंगल छोड़ कर नहीं भागेगा . इसलिये सरकार आदिवासियों को दवा स्कूल और खाना देने वाले हर व्यक्ति या संस्था के ही खिलाफ है .
इसी लिये आदिवासियों का इलाज करने वाले डाक्टर बिनायक सेन को जेल में डाला गया . आदिवासियों के बीच स्वास्थ्य और शिक्षण का काम करने वाली संस्था वनवासी चेतना आश्रम को तोड़ डाला गया . पिछले साल डाक्टर विदाउट बार्डर नामक संस्था को दंतेवाड़ा से बाहर कर दिया गया . और अब रेड क्रास को भी दंतेवाड़ा में आदिवासियों की सेवा करने से मना कर दिया गया है . हम जब दंतेवाडा में काम करते थे .तब सरकार ने आदिवासियों साढ़े छह सौ गाँव को जला दिया था . सरकार ने इन गाँव के सारे स्कूल , आंगनबाडी , राशन दुकानें , खुद ही बंद कर थी . इसके बाद सरकार ने मीडिया में जाकर चिलाना शुरू कर दिया था कि देखो देखो नक्सली हमें स्कूल नहीं चलाने दे रहे हैं , देखो नक्सली अस्पताल उड़ा रहे हैं .
मैंने सरकार से पूछ कि आपने स्कूल, आंगनबाडी और अस्पताल क्यों बंद किये हैं . तो सरकार ने कहा कि नक्सली के भय से . हम ने सूचना के अधिकार में सरकार से पूछा कि सरकार बताए कि नक्सलियों ने अभी तक कितने स्कूल टीचर को , कितने आंगनबाडी कार्यकर्ता को और कितने स्वास्थ्य कार्यकर्ता या डाक्टर को मारा है . मेरे पास आज भी सरकार का लिखित जवाब पड़ा हुआ है . सरकार ने मुझे लिख कर जवाब दिया था कि नक्सलियों ने अभी तक किसी किसी डाक्टर , शिक्षक या आंगनबाडी कार्यकर्ता को भी नहीं मारा .
इससे ये साफ़ हो जाता है कि सरकार ने नक्सलियों के कारण नहीं अपनी गंदी योजना के तहत आदिवासियों के जीवन के लिये ज़रूरी सुविधाओं पर जान बूझ कर बंदिश लगाई है . सरकार पूरी तरह से बेशर्म होकर खुले आम आदिवासियों को मार रही है .
केन्द्र सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिये . भारत के संविधान में केन्द्र को अधिकार है कि केन्द्र आदिवासियों की रक्षा के लिये सीधे कार्यवाही कर सकता है .लेकिन केन्द्र की सरकार में बैठे हुए लोगों को भी तो खनिजों की लूट में बड़ी कंपनियों से चुनाव लड़ने के लिये मोटा चंदा मिलता है . इसलिये सारी सरकारों में बैठे हुए ये भ्रष्ट नेता खुल कर आदिवासियों को मार रहे हैं ताकि उनकी ज़मीनों पर कब्ज़ा कर के उन ज़मीनों के नीचे छिपे हुए खनिजों के खज़ाने को बेच कर पैसा कमाया जा सके .
बड़ी बेचैनी हो रही है . हमारे सामने आदिवासियों का खुले आम क़त्ल हो रहा है . अदालत, मीडिया ,सरकार और समाज चपचाप इस जनसंहार को देख रहा है .
अपने इतने नंगेपन के बाद हम आखिर शान्ति शान्ति कैसे चिल्ला सकते हैं ?
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