Saturday, 16 March 2013 11:54 |
शिवदयाल शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व में अवामी लीग की राजनीति पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान की मुख्यधारा की राजनीति से लगातार अलग कर रही थी, लेकिन इसके लिए जिम्मेवार स्वयं पाकिस्तानी सेना और राजनीतिक थे। शेख मुजीब के छह सूत्री मांगपत्र पाकिस्तानी सरकार के समक्ष रखते ही समझदारों को अहसास हो गया था कि विलगाव में पड़ा पूर्वी भाग अब अलग रास्ता अख्तियार करने के लिए तैयार है। लेकिन विडंबना यह कि भुट्टो जैसा नेता भी परिस्थिति की गंभीरता का अंदाजा नहीं लगा पा रहा था। 1970 के आम चुनावों में मुजीब की अवामी लीग को पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीटें मिलीं, जबकि पश्चिमी पाकिस्तान की 138 में से एक भी नहीं। सरकार बनाने का मुजीब का दावा खारिज कर दिया गया और इस प्रकार 'बांग्लादेश' के निर्माण का आधार पूरी तरह तैयार हो गया। और इसी के साथ भयानक दमन और उत्पीड़न का वह दौर शुरू हुआ जिसके बारे में ऊपर बताया गया। 'आॅपरेशन सर्चलाइट' पूर्वी पाकिस्तान को एकदम से रौंद डालने के लिए शुरू किया गया। एक विचित्र बात यह थी कि तब के पूर्वी पाकिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथी 'द्विराष्ट्र सिद्धांत' के आधार पर अब भी 'एक पाकिस्तान' के पक्षधर थे और पाकिस्तानी सेना का खुल कर साथ दे रहे थे। इनके कई गुट थे, जैसे रजाकार, अलशम्स, अलबद्र आदि। बांग्ला राष्ट्रवादियों और उनके समर्थकों को मारने और यातनाएं देने में इन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। इन पर हजारों बेगुनाहों के खून और सैकड़ों स्त्रियों के साथ बलात्कार का इल्जाम था। वर्ष 1975 में तख्तापलट और शेख मुजीब की हत्या के बाद बांग्लादेशी समाज के ये तत्त्व एकदम निर्भय हो गए। अवामी लीग, जो नेपथ्य में चली गई थी, 1990 में मार्शल लॉ हटने के बाद पुन: उभर कर आई और इसने लोगों को मुक्ति संग्राम की याद दिलाई। अवामी लीग की नेता शेख हसीना वाजेद, शेख मुजीब की बेटी हैं; दूसरी बार प्रधानमंत्री बनी हैं। कट्टरपंथी पहले सैन्य शासन और अब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ हैं। पूर्व राष्ट्रपति जियाउर्रहमान की बेटी खालिदा जिया जिनकी नेता हैं। ये वही जनरल जियाउर्रहमान थे जिन्होंने सैनिक तख्ता पलट कर मुजीब की हत्या के बाद गद््दी हथियाई थी। सत्ता में आने के पहले भी शेख हसीना ने मुक्ति संग्राम के युद्ध अपराधियों को दंड दिलवाने का वादा किया था। सत्ता में आते ही युद्ध अपराधियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तेज कर दी। दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट ने कार्यवाहक (केयरटेकर) सरकार की व्यवस्था को अपने एक निर्णय में लोकतांत्रिक आदर्शों और सिद्धांतों के विरुद्ध ठहराया। इसे देखते हुए हसीना सरकार एक संविधान संशोधन प्रस्ताव लेकर आई, ताकि संसद में प्रचंड बहुमत के रहते इसे पारित करवा लिया जाए। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने इसके विरुद्ध अभियान छेड़ दिया। कट्टरपंथी और युद्ध अपराधी भी इसमें शामिल हो गए। खालिदा जिया ने तो 'वाशिंगटन पोस्ट' में अमेरिकी सरकार से देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए हस्तक्षेप तक की अपील कर दी, जिसकी व्यापक प्रतिक्रिया हुई और उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की मांग हुई। इसी बीच चार फरवरी को युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने जमात-ए-इस्लामी के सहायक महासचिव अब्दुल कादेर मुल्ला को उम्रकैद की सजा सुनाई। मुल्ला पर तीन सौ हत्याओं का आरोप है। बांग्लादेश के राष्ट्रवादियों और आज की युवा पीढ़ी को यह फैसला मान्य नहीं हुआ। मृत्युदंड से कम कुछ भी नहीं की मांग करते वे ढाका के शाहबाग चौक पर आ गए और वहीं डेरा डाल दिया। शाहबाग आंदोलन के एक सक्रिय कार्यकर्ता और ब्लॉगर की हत्या के बाद आंदोलन और उफान पर आ गया है। वास्तव में शाहबाग आंदोलनकारी शेख हसीना सरकार के फैसलों को वैधता प्रदान कर रहे हैं। आंदोलन में युवाओं की संख्या अधिक है, वह भी लड़कियों की। ये लोग एक खुला, लोकतांत्रिक, प्रगतिशील और स्त्री संवेदी समाज चाहते हैं और इसके लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार हैं। यह आंदोलन की शक्ति का ही परिणाम है कि शेख हसीना सरकार ने बीएनपी और चरमपंथियों के आगे झुकने से मना कर दिया है। उसने कार्यवाहक सरकार की व्यवस्था से भी इनकार कर दिया है, चुनावों की निष्पक्षता के लिए उसने मजबूत चुनाव आयोग को पर्याप्त माना है। हाल के वर्षों में एक भरोसेमंद पड़ोसी के रूप में बांग्लादेश ने भारत की सुरक्षा चिंताओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाई है, और तत्परतापूर्वक उन सभी आतंकी और चरमपंथी समूहों के खिलाफ कार्रवाई की है, जो अपनी गतिविधियां उसकी जमीन से संचालित कर रहे थे। अब भारत को आगे बढ़ कर इस सौहार्द को स्थायी बनाने की कोशिश करनी चाहिए। एक मुख्यमंत्री की जिद के कारण भारत तीस्ता नदी जल बंटवारे पर अपनी प्रतिबद्धता पूरी नहीं कर पाया है। भूमि-सीमा विवाद हल करने का वादा राष्ट्रपति मुखर्जी कर आए हैं। पता नहीं इस पर कब अमल होगा। भारत की सकारात्मक पहल हर तरह से दोनों देशों के हित में होगी। यह अवसर गंवा देना दोनों देशों के लिए नुकसानदेह साबित होगा। http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/20-2009-09-11-07-46-16/40855-2013-03-16-06-25-34 |
Saturday, March 16, 2013
बांग्लादेश की नई राह
बांग्लादेश की नई राह
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment