Wednesday, October 24, 2012

Fwd: [New post] विरोध का नया हथियार कार्टून



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From: Samyantar <donotreply@wordpress.com>
Date: 2012/10/23
Subject: [New post] विरोध का नया हथियार कार्टून
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समयांतर डैस्क posted: "-यादवेंद्र भारत में हाल के दिनों में कभी नेहरु अंबेडकर तो कभी ममता बनर्जी के कार्टून सुर्खियों म�¥"

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विरोध का नया हथियार कार्टून

by समयांतर डैस्क

-यादवेंद्र

ali-farzat-self-portraitभारत में हाल के दिनों में कभी नेहरु अंबेडकर तो कभी ममता बनर्जी के कार्टून सुर्खियों में आते रहे हैं... इनमें यूं तो कोई खास या अनहोनी बात नहीं है पर कटाक्ष के इन निष्कपट उपादानों पर सत्ताधारियों और फिलहाल तो विपक्षी पर अगले चुनावों में सत्ता की आस लगाए बैठे दलों की असहिष्णु और तानाशाही ढंग की प्रतिक्रिया जरूर भारतीय राजनय की नई संस्कृति का खुलासा करती दिखती हैं। दिलासा देने वाली बात सिर्फ यह है कि आम तौर पर जनता कि चुप्पी तोड़ते हुए कम से कम न्यायपालिका ने इस संस्कृति पर सवाल उठाए हैं। पर अरबी समाज की करवटों का सबसे ताजा उदाहरण सीरिया भारत का ऐसा नजदीकी देश है जहां राष्ट्रपति बशर अल असद को चुनौती देने वाले बुद्धिजीवियों में एक बेहद सम्मानित कार्टूनिस्ट अग्रणी भूमिका में खड़ा है।

शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो जिस दिन अखबार के पन्नों पर सीरिया में सरकारी अमले द्वारा निहत्थे लोगों के मारे जाने की खबर न दिखाई देती हो। लगभग निरंकुश वंशवादी सत्ता को चुनौती देने के लिए संगठित राजनैतिक विरोधी पार्टियां सामने नहीं आतीं लेकिन बुद्धिजीवियों द्वारा इस दमन के विरोध में स्वर उठाए जाने की खबरें छन छनकर जरूर आती रही हैं। पर लोकतंत्र बहाली के लिए खुली बगावत का आह्वान करने वालों का हस्र वैसा ही होता है जैसा हर निरंकुश सत्ता में होता है। पिछले साल जनता की लोकतंत्र समर्थक रैलियों में राष्ट्रपति बशर अल असद को सत्ता छोडऩे को ललकारने का गीत गाने वाले लोकप्रिय कवि गायक को सरकारी पिट्ठुओं ने पहले अगवा किया फिर गला काट कर खुली सड़क पर फेंक दिया जिस से बगावती जनता के बीच शासन का खौफ स्थापित किया जा सके। पर पाठकों को जान कर आश्चर्य होगा कि इस समय सीरिया में सत्ता को सबसे बड़ी चुनौती - वो भी खुली चुनौती - देने वाला शख्स एक कार्टूनिस्ट है जिसे 2011 में रिपोर्टर्स विदाउट बार्डर्स ने 'जर्नलिस्ट आफ द ईयर' घोषित किया और अप्रैल 2012 में टाइम पत्रिका ने दुनिया के सबसे प्रभावशाली सौ लोगों की फेहरिस्त में शामिल किया। पिछले अगस्त में बशर अल असद के गुर्गों ने इस निर्भीक कार्टूनिस्ट को काम के बाद घर जाते हुए रास्ते से उठाकर बुरी तरह से मारा पीटा और लगभग मरा समझ कर बीच सड़क पर फेंक दिया... विशेष तौर पर उनके दोनों हाथों को निशाना बनाया गया क्योंकि इनसे ही विद्रोह की ज्वाला। पाठकों को याद होगा कि मिस्र में वहां के सबसे प्रतिष्ठित लेखन नगीब महफूज को भी गुंडों द्वारा इसी तरह हाथ पर सबसे ज्यादा चोट पहुंचाई गई थी जिससे वे सत्ता विरोधी लेखन करने के काबिल न रहें पर उनके लेखन के तेवर मृत्युपर्यंत वैसे ही तीखे बने रहे। सीरिया की आततायी सत्ता के लिए हत्या की इस कोशिश के बाद आज भी आग उगलने वाले पूरे अरब जगत में बेहद सम्मान और प्यार के साथ देखे जाने वाले साठ वर्षीय इस राजनैतिक कार्टूनिस्ट का नाम है अली फरजत।

अली फरजत के बारे में लिखते हुए मिस्र के मुबारक विरोधी आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले प्रसिद्ध लेखक अला अल असवानी का कहना है कि यदि आप अली फरजत के नाम से अनभिज्ञ हैं तो अपने साथ ना इंसाफी कर रहे हैं क्योंकि वे भले ही एक अदने इंसान हों पर जब इंसानी मिसाल के इम्तिहान की घड़ी आई तो फरजत सीरिया नामक मुल्क का नुमाइंदा बन कर खड़े नजर आए। असवानी आगे कहते हैं कि वे मानव अधिकार आंदोलनों के दौरान एक ऐसी बंदूक बन जाते रहे जिसका निशाना जरा भी इधर उधर नहीं चूकता। कभी बशर अल असद उनके कार्टूनों के इतने मुरीद थे कि उनके घर तक जाया करते थे। यहां तक कि लगभग छह दशक बाद सीरिया में अली फरजत को 2001 में पहली बार अपना गैर सरकारी अखबार निकलने की मंजूरी दी गई। राजनैतिक असहमति की प्रमुखता वाले इस अखबार के नाम का शाब्दिक अर्थ था 'अंधेरे में दिया दिखाने वाला' और इसने वास्तव में यह भूमिका बड़ी मुस्तैदी से निभायी... पर जब तानाशाही सत्ता के बीच पिस रही आम जनता की तमाम मुश्किलों को स्वर देने वाला खुला पत्र फरजत ने राष्ट्रपति के नाम छापा तो सरकार घबरा गई और ढाई साल में ही इस अखबार को बंद कर दिया गया। पर अपने छोटे से जीवन में अखबार की लोकप्रियता और जनता के बीच पहुंच को देखते हुए अली फरजत ने अपनी वेबसाईट और फेसबुक के जरिए लोकतंत्र के लिए अलख जगाने का अभियान जारी रखा। आक्रमण किए जाने के बाद वे जैसे ही अस्पताल से छूटे, दुगुनी धार के साथ अपने काम पर लौट गए।

syria-Bashar-al-asadजहां तक कार्टूनों का प्रश्न है अली फरजत का मानना है कि ये लोगों को गुदगुदाने या हंसाने के लिए प्रयोग की जाने वाली कोई कला विधा नहीं है बल्कि हमारे आस पास मौजूद दुनिया की कुरूपता को समझने और महसूस करने का माध्यम है जिसको देख कर लोगों के मन में सच्चाई और इन्साफ का जज्बा पैदा हो। इसीलिए कार्टूनिस्ट के लिए सुघड़ रेखांकन से ज्यादा जरूरी है सकारात्मक कटाक्ष करने की दक्षता। अली फरजत की मारक धार का आलम यह है कि सीरिया ही नहीं सद्दाम के जमाने मंल इराक और गदाफी के जमाने में लीबिया में इनके कार्टूनों पर पाबंदी थी। इस सिलसिले में अपने एक इंटरव्यू में फरजत एक पुरानी घटना याद करते हैं जब पेरिस में उनकी एक प्रदर्शनी लगी थी और उसमें 'द जेनरल' शीर्षक कार्टून सबकी निगाहों में आया... अरब देशों के तमाम सैनिक तानाशाहों को यह लगता था कि ये कार्टून उनके खिलाफ बनाया गया है। फरजत की शुरू से यह खासियत रही है कि वे अपने कार्टूनों का शीर्षक नहीं देते और न ही रेखांकन के साथ कुछ लिखते हैं। पर जैसे जैसे सीरिया के हालत बिगड़ते गए उनके कार्टूनों में शक्लें भी उभरने लगीं। जनता की मुश्किलें, सरकारी अमले का भ्रष्टाचार, दमन और अत्याचार, प्रतिरोध, लोकतंत्र जैसे विषय फरजत को हमेशा से प्रिय रहे पर बाद के सालों में दीर्घकालीन तानाशाही सत्ता बुद्धिजीवी वर्ग को कैसे प्रभावित करती है इसको रेखांकित करने वाले उनके अनेक कार्टून बेहद चर्चित रहे। उदाहरण के लिए, एक लोकप्रिय कार्टून में एक लेखक का सिर ऐसे टाईपराइटर में बदलता हुआ दिखाया गया है जिससे वैसे शब्द ही लिखे जा रहे हैं जिनका शासक चाहते हैं।

अरब देशों की बात छोड़ भी दें तो द गार्डियन और ले मोंद जैसे प्रतिष्ठित विदेशी पत्रिकाओं ने अली फरजत के कार्टून दिल खोल कर छापे। बी.बी.सी. ने उनके कार्टूनों पर आधारित एक टेलीविजन शृंखला बनाने का काम शुरू किया है। उनकी प्रतिष्ठा का आलम यह है कि आक्रमण के बाद पूरी दुनिया में इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई और अरब देशों में तो उनके समर्थन में कार्टूनों की झड़ी लग गई। आज की तारीख में वे लोकतंत्र समर्थक आंदोलन के प्रतीक पुरुष बन गए हैं।

आज के दौर में अरबी के सबसे बड़े कवि माने जाने वाले एदोनिस सीरिया के हैं पर अपने देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर तानाशाही बंदिशों के कारण अनेकानेक लेखकों, कवियों और कलाकारों की तरह अब यूरोप जाकर बस गए हैं। जब सीरिया में राष्ट्रपति बशर अल असद का दमन चक्र चलना शुरू हुआ और हर रोज लोगों को गोलियों से भूना जाने लगा तब एदोनिस ने राष्ट्रपति को एक खुली चिट्ठी लिखी जिसके अंग्रेजी अनुवाद दुनिया भर में प्रकाशित हुए। उस चिट्ठी में उन्होंने चेताया कि आपकी बाथ पार्टी इतने दिनों तक सत्ता में इसलिए नहीं बनी रही कि उसकी विचारधारा सही और अकाट्य है... फौलादी पंजों की ताकत इसके पीछे से हटा ली जाए तो सबकुछ धराशायी होने में बिल्कुल भी वक्त नहीं लगेगा। पर दुनिया का तजुर्बा यह है कि यह फौलादी पंजा सिर्फ सीमित समय के लिए ही कामयाब रहता है... ऐसा लगता है कि तुम्हें खुद की अंजाम दी हुई गलतियों की कीमत अपनी जान को दांव पर लगा कर ही चुकानी होगी, शायद तुम्हारी किस्मत में इसके साथ यह भी लिखा है कि इसके बाद आवाम को उसकी आवाज वापिस मिल जाएगी जिस से वे अपनी किस्मत का फैसला करने का हक हासिल करेंगे।

मनहल अल सराज सीरिया की प्रख्यात लेखिका हैं पर अपनी रचनाओं में विरोधियों के बेशर्म कत्लेआम और उन पर किए गए अत्याचारों की घटनाओं को प्रमुखता से स्थान देने के कारण उनकी अधिकांश कृतियां सीरिया में प्रतिबंधित हैं और दिन ब दिन की इन्हीं मुश्किलों के कारण वे देश छोड़ कर स्वीडन जा बसीं। एक ब्लॉग में 'सीरियन सिनेरियो' शीर्षक से उन्होंने वर्तमान में देश का हाल बयान करने वाले 17 दृश्यों का वर्णन किया है... जैसे, स्कूलों में पढऩे वाले छोटे छोटे बच्चों का हाल ये है कि वे क्रांतिकारियों की टोली में शामिल होकर युवाओं जैसे जोशीले नारे लगा रहे हैं, उधर घर पर उनकी मांएं उनकी स्कूल से वापसी का इंतजार कर रही हैं। इनमें से कई बच्चे ऐसे होंगे जो अपने घर कभी नहीं लौट पाएंगे जब कि उनकी मांएं बेसब्री से उन्हें नहलाने, खाना खिलने और रात को बिस्तर पर सुला देने का देर देर तक इंतजार करती रहेंगी... अपने वतन से दूर मजबूरी में अकेला रह रहा वो मातृभूमि की क्रांति की एक एक खबर पर नजर रखता है... दुआएं करता है, वहां पहुंचने को मचलता है, हंसता है, फूट फूट कर रोता है, चीखता है, इबादत करता है। जब उसका कोई परिचित अजीज कत्ल किया जाता है, वो झुक कर उसके लिए इबादत करता है। अपना मुंह ढंक कर वो जोर जोर से रो पड़ता है, ऐसी दशा में उसको देखने सुनाने वाला कोई दूसरा नहीं होता। मन का गुबार निकल जाने पर वो वाश बेसिन पर जाकर अपना चेहरा साफ करता है और आकर अपनी सीट पर कंप्यूटर के सामने बैठ जाता है। फिर से खबरें देखने लगता है और दुआओं, हंसी, चीख, इबादत का सिलसिला दुबारा चालू हो जाता है। जब उसका कोई परिचित अजीज कत्ल किया जाता है, वो घुटने मोड़ कर उसके लिए इबादत करता है... सुबह काम पर ठीक ठाक निकले उसके अब्बा की लाश शाम को घर लायी गई। घर में चारों तरफ परिवार के लोगों का रोना पीटना और मातम मनाना शुरू हो गया जिसकी आवाजें दूर दूर तक पहुंच रही थीं। इन सबके बीच से अचानक रोती हुई एक बच्ची सामने आई, बोली: पर ये मेरे अब्बा नहीं हैं... इससे ज्यादा खूबसूरत हैं मेरे अब्बा।

जकारिया तामेर सीरिया के प्रतिष्ठित लेखक, पत्रकार और संपादक हैं और सामाजिक और आर्थिक विषयों पर कटाक्षपूर्ण और कई बार जादुई यथार्थवादी शैली में गहरी अतिवादी टिप्पणी करने के लिए जाने जाते हैं। सरकारी दमन से हजारों नागरिकों के मारे जाने की अंतहीन घटनाओं ने उन्हें तिलमिला दिया और फेसबुक पर उन्होंने यह तल्ख टिप्पणी की: वर्तमान सीरियन राष्ट्रपति को क्या ये मालूम है कि देश की लाखों लाख मांएं बच्चे इसलिए नहीं पैदा करतीं कि बशर अल असद के पिट्ठू उनका कत्ले आम कर डालें... और सीरिया अरब रिपब्लिक का स्थान एक कब्रों का रिपब्लिक ले ले? ये वही बशर अल असद है जो गोलान हाईट्स एक मुक्तिदाता बन कर जाने का दंभ भरता रहा है, पर वह अपना रास्ता भटक कर अपने देश में ही होम्स जैसे कुछ इलाकों में ऐसे बर्ताव कर रहा है जैसे ये सीरिया के मुक्त क्षेत्र हों।

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