स्वस्ती श्री : शैलेश मटियानी जी को जानना आवश्यक…..
By नैनीताल समाचार on May 9, 2011
http://www.nainitalsamachar.in/we-should-bring-matiyani-jee-in-main-stream/
करीब सात-आठ साल पहले, मटियानी जी की मृत्यु के बाद साहित्य अकादेमी ने मटियानी जी के संपूर्ण साहित्य का मोनोग्राफ तैयार करने का मुझे काम सौंपा। उनकी मौत से मैं तीन-चार साल तक उबर नहीं पाया था, इसलिए कुछ भी लिख नहीं पाया। बड़े प्रयत्नों के बाद जब उसका आरंभिक हिस्सा 'कथादेश' में छपा तो मटियानी जी की संतानों की प्रतिक्रिया देखकर मैं दंग रह गया। मैं जिसे उनकी ताकत समझता था, उनके बच्चे उन्हें उजागर नहीं करना चाहते थे। मुझे पहली बार मालूम हुआ कि वे उन्हें आंचलिक कथाकार कहने में अपमान का अनुभव करते थे। 1962 में जब उनका पहला कहानी संग्रह 'मेरी तैंतीस कहानियाँ' छपा तो नागार्जुन ने उन्हें हिंदुस्तान का गोर्की कहा था। 'मुख सरोवर के हंस' को जब मैंने उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 'मैला आँचल' को हटाकर संस्तुत किया, उनके बच्चों ने उसे वहाँ नहीं लगने दिया। आयोग की तत्कालीन संयोजक सुधा पांडे से कहा गया कि अगर वे इस उपन्यास को कोर्स में लगाएंगी तो वे कोर्ट में उन पर मुकदमा करेंगे।
साहित्य अकादेमी के संकलन को मैंने करीब छह-सात सालों की मेहनत के बाद साढ़े चार सौ पृष्ठों की किताब के रूप में पिछले साल तैयार किया। इसी बीच कथाकार पंकज बिष्ट ने नेशनल बुक ट्रस्ट से 'भारतीय साहित्यकार' सिरीज के अंतर्गत मटियानी जी की चुनी हुई कहानियों की योजना स्वीकृत करवा कर मुझे सौंपा। दो सौ पृष्ठों का यह संकलन मैंने गत वर्ष तैयार करके एन. बी. टी. को भेज दिया। मगर मटियानी जी की पुस्तकों के स्वत्वाधिकारी उनके पुत्र का कहना है कि वे पांडुलिपि पढ़े बगैर प्रकाशन की अनुमति नहीं देंगे। उन्हें शक है कि मैंने किताब में मटियानी जी की छवि खराब की है। मगर चाहे साहित्य अकादेमी हो या नेशनल बुक ट्रस्ट, विशेषज्ञों के उनके अपने पैनल होते हैं, जिनसे उन्होंने किताबों को रिव्यू करा लिया है। बेटे को पांडुलिपि भेजने से उन्होंने मना कर दिया है, जो उनकी अपनी नीति है। कई महीनों से दोनों किताबें प्रकाशकों के पास पड़ी हैं। शायद एन. बी. टी. ने तो उसका प्रकाशन स्थगित भी कर दिया है। मेरी मेहनत का जो नुकसान हुआ है, वह अपनी जगह पर है। साहित्य अकादेमी ने हालाँकि मुझे अपना पारिश्रमिक दे दिया है।
यह टिप्पणी मैं यहाँ मटियानी जी के पाठकों को यह संदेश देने के लिए लिख रहा हूँ कि कोई भी रचना प्रकाश में आने के बाद किसी परिवार, क्षेत्र, जाति या देश की नहीं रह जाती, वह सार्वजनिक हो जाती है। मटियानी जी का कोई भी संग्रह किसी बड़े प्रकाशक से नहीं छपा है। हिंदी साहित्य में वे बहुत अधिक चर्चित भी नहीं रहे हैं, ऐसे में उन जैसी बड़ी प्रतिभा को लोग एक दिन भूल जाएँगे। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि उनके साहित्य को हम संरक्षण प्रदान करें।
डॉ. लक्ष्मण सिंह बिष्ट 'बटरोही', नैनीताल
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खत्तेवासियों के नारों से गूँजा हल्द्वानी का आकाश
By नैनीताल समाचार on March 1, 2011
गिरिजा पाठक
2 फरवरी, 2011 को अखिल भारतीय किसान सभा के नेतृत्व में वनवासियों-खत्तावासियों ने एकता रैली के माध्यम से बिन्दुखत्ता को राजस्वग्राम का दर्जा देने, बिखरे हुए छोटे-छोटे खत्तों का एकीकरण कर उन्हें वनाधिकार कानून 2006 के तहत लिये जाने, वन गूजरों एवं खत्तावासियों का उत्पीड़न बन्द करने और उनसे अवैध वसूली पर रोक लगाने, दुग्ध उत्पादकों को सुविधाएँ देने, सेंचुरी पेपर मिल के प्रदूषण पर सख्ती से रोक लगाने, उद्योगों में स्थानीय बेरेाजगारों को रोजगार दिए जाने, कार्बेट पार्क के अन्तर्गत आने वाले सुन्दरखाल में बाघ द्वारा मारे गए ग्रामीणों के परिजनों को 10 लाख रुपए मुआवजा दिए जाने, वन विभाग द्वारा अपने मुआवजे के प्रावधानों को बदले जाने और वन्य जीवों से ग्रामीणों की पूर्ण सुरक्षा के लिए ठोस कारगर उपाय करने आदि माँगों को लेकर हल्द्वानी में जोरदार प्रदर्शन किया। हरिद्वार से लेकर टनकपुर तक बसे सैकड़ों खत्तों के निवासी आज भी दोयम दर्जे की जिन्दगी जीने को बाध्य हैं। सदियों से उन जगहों में रहने के बावजूद इन खत्तावासियों को किसी तरह की सुविधाएँ या अधिेकार प्राप्त नहीं हैं। जबकि इनमें से कई परिवार वन अधिकार अधिनियम 2006 के दायरे में आते हैं। वन-विभाग के रहमोकरम पर निर्भर इन खत्तों के बाशिन्दों के पास न तो अपनी भूमि है और न ही शिक्षा, स्वास्थ्य, राशनकार्ड, पानी, बिजली, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएँ। चुनावों में मतदान करने के अतिरिक्त कोई भी अधिकार, यहाँ तक कि अपने पाले गए पशुओं के गोबर को इकट्ठा कर बेचने तक का अधिकार इनके पास नहीं है। इन्हें यदि किसी बीमार को वाहन से अस्पताल में ले जाना होता है, तो उस वाहन से 75 रुपए की अवैध वसूली की जाती है। कुछ लोगों को राशन कार्ड मिले भी तो 1000 रुपए खर्च कर और वह भी एपीएल राशनकार्ड मिले, जिनका कोई लाभ उनको नहीं मिलना है।
सैकड़ों प्रदर्शनकारी गगनभेदी लगाते हुए हल्द्वानी की सड़कों से गुजरे। इनमें अधिसंख्य लोग पहली बार अपने घरों से निकलकर किसी प्रदर्शन में आए थे। आज तक उनको यह विश्वास भी नहीं था कि वे अपनी समस्याओं और दुःख-दर्दों को लेकर सड़कों पर संघर्ष में उतरेंगे।
प्रदर्शन के बाद हुई सभा को सम्बोधित करते हुए किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव पुरुषोत्तम शर्मा ने कहा कि राज्य बनने के दस वर्षं बाद भी उत्तराखंड की कृषि नीति नहीं बन पाई है। न ही वन अधिकार कानून 2006 प्रदेश में लागू हो पाया है। भाकपा (माले) के उत्तराखण्ड प्रभारी राजा बहुगुणा ने खत्तावासियों-वनवासियों की एकता रैली को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि कांग्रेस- भाजपा की अमरीका व कॉरपोरेटपरस्त नीतियों के परिणामस्वरूप देश भर में आदिवासियों-वनवासियों के विरुद्ध बेदखली व दमन अभियान चलाया जा रहा है। किसान महासभा के जिलाध्यक्ष बहादुर सिंह जंगी ने कहा कि बिन्दुखत्ता को राजस्व ग्राम का दर्जा न मिल पाना भाजपा-कांग्रेस शासित सरकारों की वादाखिलाफी की पराकाष्ठा है। किसान महासभा के उपाध्यक्ष मान सिंह पाल ने ऐलान किया कि वनवासियों एवं खत्तावासियों की माँगों पर यदि अब भी सकारात्मक कार्यवाही नहीं होती तो संघर्ष और तेज किया जाएगा।
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फैज जन्म शताब्दी: फैज बरास्ता गिरदा…
By राजीव लोचन साह on March 1, 2011
आज 13 फरवरी है….. प्रख्यात शायर फैज अहमद 'फैज' का सौवाँ जन्म दिन। फैज की पुत्री, चित्रकार और लेखिका सलीमा हाशमी एक पखवाड़े पहले भारत का चक्कर लगा कर यह अपील कर गई हैं कि फैज की जन्म शताब्दी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाई जाये। खासकर भारत और पाकिस्तान के बीच बेमतलब की नफरत की दीवार को तोड़ने के लिये तो इस मौके का उपयोग हो ही। लेकिन इस अपील से कहाँ फर्क पड़ने वाला है ? पाकिस्तान की सरकार तो कठमुल्लों के नियंत्रण में है ही, सलमान तासीर जैसे गवर्नर की जिन्दगी तक वहाँ महफूज नहीं है। मगर 'संविधान' में अपने आप को 'पंथ निरपेक्ष' घोषित करने वाले भारत में भी चरमपंथियों का दबदबा है। कांग्रेस पार्टी भले ही धर्मनिरपेक्ष होने का दंम भरे, इन चरमपंथियों के सामने वह प्रायः बचाव की मुद्रा में ही दिखाई देती है।
तो इन दोनों देशों के हुक्मरानों का फैज से क्या लेना-देना हो सकता है ? मगर ताज्जुब यह है कि इक्का-दुक्का अपवादों को छोड़ कर मीडिया ने भी फैज को नजरअंदाज कर दिया है।
आज गिरदा अगर जिन्दा होता तो बेचैन रहता। एक महीने पहले से उसकी कच-कच शुरू हो जाती……बब्बा एक अंक प्लान करो यार….. ऐसा करते हैं….। वह फैज का कितना बड़ा प्रशंसक था। हम लोगों को फैज के बारे में जितना कुछ जानने को मिला, वह गिरदा के ही कारण। फैज की कितनी ही नज़्मों का उसने हिन्दी में भावानुवाद किया था और हमने भी उसके साथ-साथ वे नज्मे़ं गुनगुनाई थीं। 'दरबारे वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जायेंगे' जैसे गीत जलूसों में भी गाये थे। सबसे यादगार तो 'हम मेहनतकश जग वालों से' का कुमाउनी में अनूदित और संगीतबद्ध किया गया गिरदा का गीत 'हम ओड़, बारुड़ि, ल्वार, कुल्लि, कभाड़ि जधिनऽ यो दुनी थैं हिसाब ल्ह्यूँलो…' है, जो इस तरह जनता की जुबान पर चढ़ गया है कि यह भी याद नहीं रहता कि यह मूलतः फैज की रचना है। उसकी अन्तिम यात्रा में भी आँखों में आँसू भरे दर्जनों लोग यह गीत गाकर उसे श्रद्धांजलि दे रहे थे।
1985 के मई दिवस पर गिरदा की पहल पर नैनीताल समाचार ने कुछ सहयोगी प्रकाशनों की मदद से फैज पर एक कविता पोस्टर प्रकाशित किया था। उससे कुछ ही समय पहले शेखर पाठक ने लखनऊ की बारादरी में सम्पन्न एक कार्यक्रम के दौरान फैज साहब के उर्दू और अंग्रेजी में आटोग्राफ लिये थे। वे दस्तखत भी उस पोस्टर में काम आ गये। तब ट्रेडिल मशीन पर कई तरह से शीर्षासन कर छापा गया यह पोस्टर हमने 15 से 30 सितम्बर 2010 के अंक में गिरदा को याद करते हुए पुनर्मुद्रित किया है।
फैज पर जानकार लोग बहुत कुछ लिखेंगे…बतायेंगे। वह विशेषज्ञता फिलहाल समाचार के बूते की बात नहीं हैं….. कम से कम गिरदा की अनुपस्थिति में। लेकिन हम महान शायर फैज अहमद 'फैज' को श्रद्धांजलि देते हुए हाल ही में बिछुड़े अपने साथी गिरदा को एक बार फिर याद करते हैं।
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अपनी फाकामस्ती और औघड़ प्रवृत्ति के चलते गिर्दा को उसके प्रियजन इस युग का कबीर भी मानते थे। 30 मई 200... - श्रद्धांजली : गिर्दा पर कवितायें
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मंजूर हुसैन लगभग 1978-79 की बात होगी। इलाहाबाद में नाट्य महोत्सव था। मैं सांस्कृतिक मंच, वेधशाला ... - नगाड़े खामोश हैं और हुड़का भी……
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अण्णा हजारे को सलाम…लेकिन माजरा क्या है ?
By राजीव लोचन साह on May 9, 2011
भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग का पहला चरण जीत लिया गया है…. जन लोकपाल विधेयक लाने के बारे में केन्द्र सरकार अण्णा हजारे की सारी माँगें मान चुकी है….. अब अगली लड़ाई जाने कब और कैसी होगी! हम जनान्दोलनों से जले लोग हैं। अब जनता के उत्साह को भी फूँक-फूँक कर देखते हैं। 1994 में हमने [...]
Full Story »नाट्य प्रस्तुतियों से दी निर्मल को श्रद्धांजली
By नैनीताल समाचार on May 8, 2011
हरीश रावत रंगकर्मी एवं सिने अभिनेता स्व. निर्मल पाण्डे की प्रथम पुण्यतिथि (बरसी) पर 'निर्मल पाण्डे मेमोरियल सोसाइटी' के तत्वावधान में 8 व 9 मार्च 2011 को शैले हॉल मल्लीताल में दो दिवसीय नाट्य समारोह का आयोजन किया गया। रंगभूमि, नैनीताल के कलाकारों ने समारोह के प्रथम दिन वरिष्ठ रंगकर्मी राजेश आर्य के सहयोग से [...]
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