Sunday, August 31, 2025
ज्ञान,विज्ञान,विचार पर आस्था भारी,पूरी दुनिया कट्टरपंथियों के शिकंजे में
बंगाल में मुसलमान कट्टरपंथियों के विरोध के कारण जावेद अख्तर का विरोध और उनका कार्यक्रम रद्द किया जाना बेहद दुखद और शर्मनाक है। #जावेद_अख्तर एक बेहतरीन शायर और सेकुलर इंसान हैं। इसका विरोध बंगाल के सुशील समाज और खास तौर पर वामपंथियों को करना चाहिए क्योंकि वे मिजाज से तरक्कीपसंद वाम हैं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। क्यों?क्या वामपंथी अब वाम विचारों का भी समर्थन नहीं करते?
मुझे ममता बनर्जी के राज में हुए इस हादसे से कोई हैरत नहीं हुई।क्योंकि इसी बंगाल से बांग्लादेश में अल्पसंख्यक उत्पीड़न पर लिखे अपने उपन्यास लज्जा के कारण निर्वासित लेखिका Taslima Nasrin को भी बंगाल की वाम सरकार ने खदेड़ दिया था मुस्लिम कट्टरपंथियों के विरोध के कारण।
सत्ता बदल जाने और #MamtaBanerjee के मुख्यमंत्री बनने के बाद स्थिति वैसे ही नहीं बदली,जैसे खालिदा जिया के राज में तस्लीमा का निर्वासन हुआ, शेख हसीना या मोहम्मद युनूस ने भी तस्लीमा को घर लौटने की सूरत नहीं बनी।
ममता दीदी खुद प्रतिक्रियावादी हैं।घोर वाम विरोधी हैं। वाम का सफाया करके उन्होंने पश्चिम बंगाल को कट्टरपंथ के हवाले कर दिया है।इसमें कोई शक?
इस देश में कट्टरपंथी अब हर कहीं हावी हैं। विचारों की,अभिव्यक्ति की कोई स्वतंत्रता कहीं नहीं है।जावेद साहब का भाजपाई राज्यों में विरोध न होने की बात कितनी सही है,हमें नहीं जानते।
पाकिस्तान किसी कार्यक्रम में जाने का विरोध न होने के कारण वहां के कट्टरपंथ को या बांग्लादेश में वामपंथियों के जाने की इजाजत की वजह से वाहन के कट्टरपंथी उभर को जैसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, भारत में भी कट्टरपंथियों की निरंकुश तानाशाही को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आदिम युग से ज्ञान विज्ञान, मनुष्यता, सभ्यता का विकास आस्था के विरुद्ध सवाल उठाए जाने के कारण ही हुआ।इसके लिए महान दार्शनिक सुकरात, महान वैज्ञानिक गैलीलियो जैसे लोगों की शहादते नज़ीर हैं।
आज आस्था पूरी दुनिया पर हावी है।
सवालों और विचारों की कोई गुंजाइश नहीं है।
सत्ता हो या सियासत,कट्टरपंथ की कठपुतलियां हैं।
वाम ही वाम के खिलाफ है।
तरक्कीपसंद ही तरक्की के खिलाफ है।
भावनाएं तर्क और विज्ञान पर हावी हैं।
साहित्य, पत्रकारिता, मीडिया, कला, संगीत, रंगकर्म, फिल्म सबमें आस्था और भावना हावी है। विचारों और सवालों का निषेध है।
हम अंधा युग में हैं
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