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Thursday, June 10, 2021

उनका नाम तुलसी नहीं था,लेकिन वे तुलसी बनकर जीती रही और उसी तुलसी का महाप्रस्थान

 तुलसी चाची का महाप्रयाण

पलाश विश्वास

उनका नाम तुलसी नहीं था।


भारत विभाजन के बाद पूर्वी बंगाल से सरहद पार करते हुए और शरणार्थी शिविरों में महामारी फैलते रहने से लाखों परिवार कट फट कर आधे अधूरे रह गए थे। लाखों बच्चे मनाथ हो गए थे।


बसंतीपुर में भी बहुत से परिवार आधे अधूरे आये। बाप बेटा, चाचा भतीजा, मौसी मौसा और भांजा,इस तरह के परिवार ने बसंतीपुर आकर नए सिरे से खुद को जोड़ा।


 अनेक परिवारों में स्त्रियां नहीं थीं। जो स्त्रियां आईं,उनका मायका उस पार या इस पार कहीं और छूट गया या जनसंख्या स्थानांतरण की त्रासदी में हमेशा के लिए खो गया। इन स्त्रियों ने गांव में ही किसी को पिता,किसीको भाई बनाकर नए रिश्ते बना लिए। 


बच्चों ने भी दूसरी औरत को अपनी मां और उनके बच्चों को अपना भाई मानकर जीना सीखा।


अतुल मिस्त्री और उनके भाई अनाथ किशोर थे। वे हमारे परिवार के साथ आये। उनके माता पिता अभिभावक नहीं थे।वे हमारे ही परिवार में शामिल हो गए। लेकिन अलग परिवार न होने से उनको जमीन अलॉट नहीं हो सकती थी।


 तब बसंतीपुर एक साझा परिवार था। बल्कि यह कहें कि दिनेशपुर की सभी 36 बंगाली कालोनियों के लोग एक विशाल संयुक्त परिवार के ही सदस्य थे।


विवाहयोग्य युवकों की गांव में आस पास विवाह कराकर आधे अधूरे परिवार में एक स्त्री को दाखिल कराकर उनको जमीन अलॉट करवाई गई।


बसंतीपुर के मातबरों पुलिन बाबू, maandaar मण्डल, शिशुवर मण्डल, वरदाकान्त मण्डल,हरि ढाली, अतुल शील और रामेश्वर ढाली ने जुगत लगाई और विवाह से पहले ही अतुल काका को विवाहित दिखाकर उन्हें और अवनी काका को जमीन दिला दी गई।


 अतुल काका की पत्नी का नाम कागजात में तुलसी लिख डियां गया।


फिर सबने मिलकर उनके लिए दुल्हन खोज निकाला,जो पड़ोसी गांव हरिदासपुर की थी। उनका असली नाम क्या था,किसीको नहीं मालूम। 


वे तुलसी बनकर बसंतीपुर आयी और तुलसी के रूप में ही कल उनका महाप्रयाण हो गया।


 वे अरसे से अस्वस्थ थीं। छोटे से कद की काकी बिल्कुल अकेली हो गयी थी। कैसे वे अबतक जीती रहीं,यही चमत्कार है।


महीने भर पहले उनकी देवरानी अवनी काका की पत्नी का देहांत हो गया था। अतुल काका भी बहुत पहले दिवंगत हो गए। रंगकर्मी और अध्यापक अवनी काका का गेठिया टीबी अस्पताल में उनसे भी पहले निधन हो गया था। 


अतुल काका और तुलसी काका की बड़ी बेटी विवाह के बाद दिवंगत हो गयी।तो दो बेटों का भी विवाह के बाद निधन हो गया।


तुलसी काकी ने जीवन भर इतने दुख झेले कि उनके शरीर में कुछ बचा ही न था। 


चिता पर उठाने के एक घण्टा पैंतालीस मिनट के अंदर ही वे पंचतत्व में विलीन हो गयी।


 रंगकर्मी, अध्यापक अवनी काका और छोटी काकी की कथा फिर कभी।


तुलसी काकी और अतुल काका

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